हम अपने आस-पास की हर चीज के साथ परस्पर संवाद करते हैं। व्यक्ति अन्य व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूहों, उपकरणों, मशीनों या यहां तक कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ परस्पर संवाद की प्रक्रिया में संलग्न होते हैं। ज्ञान के निर्माण में परस्पर बातचीत या संवाद की भूमिका सर्वविदित है। इस प्रक्रिया में, अनुदेशात्मक डिजाइन और अधिगम शैलियों से संबंधित कई सिद्धांत और मॉडल तैयार किए गए और अंततः प्रसिद्ध हुए। परस्पर संवाद का सिद्धांत ऐसा ही सिद्धांत है। यह सिद्धांत परस्पर बातचीत या संवाद के महत्व पर जोर देता है जिसमें छात्र विभिन्न कॉन्सेप्ट के बारे में अपने ज्ञान और समझ को विकसित करने के लिए संलग्न होते हैं। यह सिद्धांत ट्रांसडिसिप्लिनरी (पार-अनुशासनात्मक) है और इसकी शुरुआत 1975 में गॉर्डन पास्क द्वारा हुई थी।
साइबर्नेटिक्स में पास्क की रुचि ने परस्पर संवाद के सिद्धांत के विकास की रूपरेखा तैयार की। साइबर्नेटिक्स परस्पर संवाद और नियंत्रण सिद्धांत का विज्ञान है, जो मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र, विद्युत और यांत्रिक संचार प्रणालियों जैसे स्वचालित नियंत्रण प्रणालियों की तुलना करने से संबंधित है। परस्पर संवाद से अधिगम एक स्वाभाविक आवश्यकता मानी जाती है – “ऐसा होना चाहिए”. इसलिए, पास्क के परस्पर संवाद के सिद्धांत के प्रतिपादन को प्रौद्योगिकी-समर्थित मानव शिक्षण कार्यक्रमों के डिजाइन और मूल्यांकन के लिए मानक रूप से लागू किया जा सकता है। परस्पर संवाद का सिद्धांत एक अर्ध-बुद्धिमत्तापूर्ण शिक्षण प्रणाली विकसित करने से संबंधित है, जो छात्रों को पारिस्थितिकी तंत्र की जटिल वास्तविक संभावित प्रणाली प्रक्रियाओं को समझने में सक्षम बनाता है।
परस्पर संवाद के सिद्धांत का उद्देश्य दो या दो से अधिक संज्ञानात्मक प्रणालियों के भीतर या उनके बीच होने वाली बातचीत का वर्णन करना है। इस सिद्धांत के पीछे मूल अवधारणा यह विचार है कि एक सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट की उपस्थिति परस्पर संवाद के माध्यम से सीखने की सुविधा प्रदान करती है और ज्ञान को सुस्पष्ट करता है। यह आगे बताता है कि प्रणाली किसी दिए गए कॉन्सेप्ट पर एक संवाद में कैसे संलग्न होते हैं और जिस तरह से वे इसे समझते हैं, उसमें अंतर की पहचान करते हैं। परस्पर संवाद का सिद्धांत द्वंद्वात्मक दृष्टिकोण पर काम करता है। द्वंद्ववाद दो विरोधी सिद्धांतों, विचारों या संरचनाओं पर आधारित एक संरचना है। इस स्थिति में, परस्पर संवाद में शामिल पक्ष द्वंद्वात्मक विरोध की संरचना करते हैं। जैसा कि सामान्य द्वंद्वात्मक प्रक्रिया में होता है, दोनों पक्ष, शुरू में विरोध की स्थिति में, परस्पर बातचीत के माध्यम से एकीकरण की ओर बढ़ते हैं। यह प्रतिभागियों के बीच समझौतों के लिए उन्मुख बहु-स्तरीय संवाद के माध्यम से ज्ञान के उद्भव का वर्णन और व्याख्या करता है और यह मॉडलिंग सुविधाओं और उपयुक्त संचार और एक्शन इंटरफेस द्वारा समर्थित है; इसलिए, यह भी एक बहुत ही व्यावहारिक ज्ञान-पद्धति शास्त्र है।
परस्पर संवाद कई अलग-अलग स्तरों पर आयोजित किए जा सकते हैं जैसे:
- सामान्य चर्चा के लिए प्राकृतिक भाषा,
- विषय वस्तु पर चर्चा के लिए विषय-वस्तु आधारित भाषाएँ, और
- अधिगम/भाषा के बारे में बात करने के लिए निरूपक भाषाएँ।
अधिगम की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए, यह तर्क दिया गया कि विषय वस्तु को उन संरचनाओं में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है जो यह दर्शाती हैं कि क्या सीखा जाना है। तीन सिद्धांतों को रेखांकित किया गया, जिससे परस्पर संवाद के सिद्धांत को समझने में आसानी हुई। वे थे:
- विषय वस्तु को सीखने के लिए कॉन्सेप्ट के बीच के संबंध को समझना था,
- विषय की स्पष्ट व्याख्या या संचालन समझने में सहायक है,
- हर व्यक्ति अलग-अलग तरीके से अधिगम करता है।
“टीच बैक” परस्पर संवाद के सिद्धांत के माध्यम से अधिगम का सबसे प्रमुख तरीका है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को वह सिखाने का प्रयास करता है जो उसने सीखा है।
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Embibe के लाइव डाउट रिजॉल्यूशन फीचर में परस्पर संवाद के सिद्धांत के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। यह एक दोतरफा प्रक्रिया है और छात्र दिन के किसी भी समय इसका उपयोग किसी भी प्रश्न को हल करने के लिए कर सकते हैं जब भी उन्हें सीखने के दौरान समस्या होती है। अब तक के संवाद की समीक्षा से पता चलता है कि छात्र अपनी प्रगति पर विशेषज्ञों से मान्यता और प्रशंसा चाहते हैं और अपने अनुभवों से प्रेरणा प्राप्त करते हैं। इसी तरह, Embibe विशेष रूप से माता-पिता के लिए एक पेरैंट एप्प प्रदान करता है ताकि एक छात्र की सीखने की प्रक्रिया का पर्याप्त मूल्यांकन किया जा सके और उसे रिवॉर्ड दिया जा सके। Embibe का टीचर एप्प विथ JioMeet भी शिक्षकों और छात्रों के बीच परस्पर संवाद पर जोर देता है।