हिंदी व्याकरण
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इस पाठ के अंतर्गत छात्रों के वाचन एवं लेखन को शुद्ध बनाने के दृष्टिकोण से वर्णमाला की पहचान कराई जाती है। इसके अंतर्गत छोटी लेकिन महत्वपूर्ण अशुद्धियां जैसे अनुनासिक जैसे हैं या है, या र के बदलते प्रारूप (क्र, कृ, र्क की) प्रयोग विधि सिखायी जाती है।

शब्दों के सार्थक समूह का उपयोग कर वाक्य निर्माण की विधि एवं वाक्यों के अंग, गुण तथा अर्थ एवं रचना के आधार पर विभाजन का अध्ययन इस पाठ में किया जाता है। वाक्यों के रूप परिवर्तन या संश्लेषण की शिक्षा भी इस पाठ में ली जाती है।

शब्दों के शुद्ध रूप के ज्ञान एवं उपयोग की विधि ज्ञात होने के उपरांत शब्दों के साथ अन्य शब्दों को जोड़ कर शब्दों के निर्माण करने की विधि इस पाठ के अंतर्गत सिखायी जाती है। इसके अंतर्गत उपसर्ग, प्रत्यय, संधि एवं विच्छेद तथा समास का अध्ययन किया जाता है।

शब्दों के उपयुक्त उपयोग के ज्ञान के दृष्टिकोण से यह पाठ अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत शिक्षार्थी वचन, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रियाविशेषण एवं अव्यय की पहचान, उदाहरण एवं उपयोग की जानकारी ग्रहण करते हैं।

शब्दों के सार्थक समूह का उपयोग कर वाक्य निर्माण की विधि एवं वाक्यों के अंग, गुण तथा अर्थ एवं रचना के आधार पर विभाजन का अध्ययन इस पाठ में किया जाता है। वाक्यों के रूप परिवर्तन या संश्लेषण की शिक्षा भी इस पाठ में ली जाती है।

समय निर्धारण के दृष्टिकोण से किये हुए, हो रहे या होने वाले कार्य को विभिन्न कालों में विभाजन की प्रक्रिया सीखने एवं वाक्य प्रयोग हेतु यह पाठ महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत काल के मुख्यतः तीन प्रकार: भूत, वर्तमान तथा भविष्य काल का अध्ययन किया जाता है।

इस पाठ के अंतर्गत कारक की परिभाषा, उदाहरण, भेद, प्रयोग, कारकों के मध्य अंतर एवं कारक विभक्ति चिन्हों का अध्ययन किया जाता है। शिक्षार्थी इसमें कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, संबंध, अधिकरण एवं संबोधन कारक का अध्ययन करते हैं।

इसमें लिंग की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण तथा पुल्लिंग शब्दों एवं स्त्रीलिंग शब्दों की पहचान का अध्ययन किया जाता है। शिक्षार्थी लिंग परिवर्तन के नियमों का अध्ययन करते हैं तथा पुल्लिंग से स्त्रीलिंग, तथा स्त्रीलिंग से पुल्लिंग बनाने की विधि सीखते हैं।

शब्दों के समान अर्थ से परे कुछ अन्य व्यंग्यात्मक या गूढ़ अर्थों को दर्शाने एवं भाषा को प्रभावशाली बनाने के उद्देश्य से 'मुहावरे' पाठ का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत हिंदी मुहावरों एवं उनके अर्थ तथा प्रयोग की शिक्षा ली जाती है।

शिक्षार्थियों द्वारा देशी क्षेत्रों में भाषा को प्रभावी एवं शब्द के सामान्य अर्थ से अलग अन्य गूढ़ अर्थ को दर्शाने हेतु लोक भाषाओं में प्रचलित लोकोक्तियों के उदाहरणों एवं प्रयोग का अध्ययन इस पाठ के अंतर्गत किया जाता है।

काव्य को अलंकृत करने हेतु उसमें प्रयुक्त अलंकारों का शब्द एवं अर्थ के आधार पर विभाजन, उनका काव्य में प्रयोग एवं उनके अर्थ का अध्ययन इस पाठ के माध्यम से किया जाता है। शब्दालंकार एवं अर्थालंकार के विभिन्न भेदों को जानने के दृष्टिकोण से यह पाठ महत्वपूर्ण है।

इस पाठ के अंतर्गत काव्य में प्रयुक्त रस की परिभाषा एवं भेद तथा उदाहरण का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत श्रृंगार, हास्य, करुण, वीर, रौद्र, भयानक, अद्भुत, बीभत्स, शांत, वात्सल्य एवं भक्ति रस का अध्ययन किया जाता है।

पाठ के अंतर्गत काव्य में वर्णों या मात्राओं के विन्यास से पर उत्पन्न आह्लाद का अध्ययन करते हैं। इसमें छंद की परिभाषा, तत्व, भेद, वर्ण, मात्रा, शुभाक्षर, वर्णिकरण एवं छंद के प्रकार यथा मात्रिक एवं वार्णिक छंद के बारे में अध्ययन करते हैं।

अपठित गद्यांश एवं काव्यांश का अध्ययन कर स्मृति या पुनरावलोकन के आधार पर गद्यांश आधारित प्रश्नों को हल करने की विधि का अध्ययन शिक्षार्थी इस पाठ के अंतर्गत करते हैं।

